सर्वप्रथम उच्च वर्ग के लोग एवम सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं को होश में आने की जरूरत है साहिब!
2. भला कोई बेवजह अपने मूल धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म क्यों अपनाएगा... कही न कही चूक हमसे ही हुई होगी,नहीं तो मजदूर और गरीबि रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को तो ये भी नहीं मालूम साहब की उनका धर्म कौनसा है। हिंदू मुसलमान क्या है ये तो उन दंगाईयों को पता होगा की कब मौका मिले और राजनीति में अपना पैर पसारे। कही न कही कोई भूल, बकबक करने वालों से ही हुई होगी।
तभी तो समाज में आज भी लोग खुशी खुशी बहिष्कृत होना पसंद कर रहे हैं और धर्मांतरण जैसे करनी कर रहे है। जहां तक मेरी जानकारी के अनुसार मेरे गांव में कुछ ऐसे ही मामले हैं जिनमे समाज के कुछ उच्च वर्ग के लोगों के द्वारा सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, उसपर प्रशासन को जानकारी होने के बाद भी अबतक कोई कारवाई नहीं किया गया है इसी का फायदा उच्च वर्ग के लोग उठाते रहे हैं, और आज भी मजदूर वर्ग के लोग इनका शिकार हो रहे हैं। तभी तो अगर कोई गवर्नमेंट योजना निकालती है तो उसका लाभ अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाता इसका लाभ पात्रता धारी को ना मिलकर बीच में योजना कहां जाती है पता ही नहीं चलता।
बल्कि अगर एकात योजना पहुंच भी जाता है पंचायत तक तो इसमें भी जुम्मा जा की चालू हो जातीग तुलसी क्या कहीं दंगाई ना कहे तो घोटालेबाज ना कहे तो करप्शन ना कहें तो क्या कहेंर इनके खिलाफ कोई बोलना चाहे तो निठल्लों की फौजें मकान तक तोड़वा देते हैं सच्चाई यही है की कोई किसी मिशनरी नहीं कहता की आओ धर्म परिवर्तन करो बल्कि हमारे अपने ही लोग होते हैं जो अपनी राजनीतिक दबाव बनाकर धार्मिकता के नाम पर दंगे करवाना चाहते हैं ताकि उनकी जेबें भरी रहे। और जिनके साथ अन्याय हुआ है वही मजदूर लोग न्याय के लिए दर बदर ठोकर खाते हुए नजर आ रहें हैं।
3. अंतिम बात ये कहना चाहुंगा साहिब, धर्म परिवर्तन किए है तो कौनसा गुनाह कर दिए...? जब भारतीय संविधान में स्पष्ट हो चुकी है की भारत के हर मूल व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है,इसके अनुसार कोई भी भारत का मूल नागरिक किसी भी धर्म को मान सकता है। इसमें भला कौनसा गलती हो गई उन मजदूर वर्ग के लोगों ने जो सामाजिक बहिष्कार एवम आर्थिक दंड से परेशान एवम सामाजिक प्रताड़ना से परेशान होकर अन्य समाज में अपना जीवन गुजारना चुन लिए, मानता हूं कुछ लोगों का कहना है समाज में रहना चाहिए धर्म नहीं बदलना चाहिए, तो फिर उन्हीं लोगों से मेरा एक सवाल है अगर कोई स्त्री हिंदू धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म अपना ले तो क्या उस स्त्री के परिवार को आप मुस्लिम कहेंगे या फिर हिंदू....?
भाइयों मेरा मानसिकता किसी धर्म या समाज के नीति नियमों की अवहेलना करना या किसी की भावनाओ को ठेस पहुंचाना नहीं है बल्कि मैं चाहता हूं की कही न कहीं हम जिस धर्म संस्था या समाज में रहते हैं उसी के बीच में कुछ ऐसे परंपराएं है जिसका हम पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण कर रहे हैं जिसकी वजह से हमारे समाज में अनैतिकता और अनर्गल विचारों की वजह से जाने अंजाने में ही गलतियां करते जा रहे हैं।इन्ही का फायदा अन्य सोसाइटी के धर्म गुरु लोग उठा रहे हैं।
अतः मेरे मतानुसार सामाजिक बहिष्कार एवम अन्य हस्तांतरित होने वाली कुरीतियों को तत्काल बंद कर समाज को एक सभ्य समाज के बारे में विचार करना हर एक के लिए स्मरणीय रहेगा।
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