कितना लेते हो केस को छुपाने के साहिब,हमें भी बता दो की दाम चुकाकर तुम्हारा ही खानदान को नाश का नाश कर सकूं....
क्यों न कहूं बिकाऊ तुझे ऐ बीके हुए पत्रिका के मालिक, वैसे कितना लेते हो बिकने और गरीबों की आवाज दबाने के।
ऐसे ही बिकते रहे होंगे शायद उस समय लालची दंगाई संगठन.....वीरांगनाओं ने अपना आबरू लुटाकर पुरातन समय में जब महिलाएं चूड़ी उतारकर डाकू का रूप धारण की होगी। शर्म करो ऐ देश के लूटेरों, कहां से सीख जाते हो ये नफरत की राजनीति करना। ये झूठ की हुकूमत करना। शर्म करो ऐ दोगली मीडिया की क्षण भर की राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए किसी की बस्तियां उजाड़ देते हो। कौन दे देता होगा इनको इतना ज्ञान,की पहले लूट लो और किसी का घर बर्बाद कर लो,और फिर शांति पूजा के लिए गंगा में जाके डुबकी लगाओ। पूर्व सरपंच इतने बड़े दोगले हैं की सामने से वार नहीं कर सके तो पुलिस के सहारे लेकर हमें गिरान में लगे हुए हैं। पुलिस के सहारे लेना शुरू कर दिए साहब। हराम की कमाई ना किसी को आजतक रास आया था, और ना कभी रास आएगा। थोड़ा सा क्या जनता ने भरोसा कर लिया। खुद को भगवान समझ बैठे थे। घोटाले कर लो और फिर हवन कराना। ये किसी भी धर्म में इंसानियत नहीं। नहीं राजनीति में भले ही अच्छे जानकार हो सकते हो लेकिन, लोगों के नजर में जगह नहीं बना पाए तो, राजनीति करने के कोई मायने नहीं। पत्रकार पर दबाओ बनाने वाले राजनीतिक लालच के पुजारियों राजनीति में दोबारा मौका नहीं मिलना चाहिए। जो करना है अभी करो इसी तरह एक दिन तुम्हारे महिलाओं की आवाज भी दबा दिया जाएगा,और तुम यूं ही देखते रहना चुपचाप धार्मिक दंगे करने में लगे रहना। हराम के पैसे ले लेना और छोड़ देना उन दरिंदों के पास।
ऐसे ही बिकते रहे होंगे शायद उस समय लालची दंगाई संगठन.....वीरांगनाओं ने अपना आबरू लुटाकर पुरातन समय में जब महिलाएं चूड़ी उतारकर डाकू का रूप धारण की होगी। शर्म करो ऐ देश के लूटेरों, कहां से सीख जाते हो ये नफरत की राजनीति करना। ये झूठ की हुकूमत करना। शर्म करो ऐ दोगली मीडिया की क्षण भर की राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए किसी की बस्तियां उजाड़ देते हो। कौन दे देता होगा इनको इतना ज्ञान,की पहले लूट लो और किसी का घर बर्बाद कर लो,और फिर शांति पूजा के लिए गंगा में जाके डुबकी लगाओ। पूर्व सरपंच इतने बड़े दोगले हैं की सामने से वार नहीं कर सके तो पुलिस के सहारे लेकर हमें गिरान में लगे हुए हैं। पुलिस के सहारे लेना शुरू कर दिए साहब। हराम की कमाई ना किसी को आजतक रास आया था, और ना कभी रास आएगा। थोड़ा सा क्या जनता ने भरोसा कर लिया। खुद को भगवान समझ बैठे थे। घोटाले कर लो और फिर हवन कराना। ये किसी भी धर्म में इंसानियत नहीं। नहीं राजनीति में भले ही अच्छे जानकार हो सकते हो लेकिन, लोगों के नजर में जगह नहीं बना पाए तो, राजनीति करने के कोई मायने नहीं।
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