"चोर–चोर मौसेरे भाई"
बालोद जिला मुख्यालय के अंदर कुछ लोग आम जनता को जो अपनी समस्या के समाधान हेतु कार्यालय पहुंचते हैं उनको कुछ दल्लों के द्वारा संबंधित अधिकारी से मिलने से पहले ही जिला मुख्यालय के अंदर में ही दलाल कमीशनखोर जो काम करवाने के नाम पर गुमराह करते हैं।
तभी मैं सोचूं कि ये लंगूर की दुम पर अंगूर कहां से आ गए हैं, दर असल ये वे गद्दार आईहैं जो जिस थाली में खाएंगे उसी थाली में छेद करेंगे।इनकी पहचान खोजने से नहीं बल्कि इनसे कटुता रखने से होती है। ये वे छुपे हुए गद्दार हैं जो बाहर से तो ऐसे लगेंगे जैसे देश का पूरा मैनेजमेंट का कार्यभार इन्हीं के उपर टिके होते हैं। लेकिन वास्तविकता इनकी तब समझ आती है जब इनके होकर भी इनमें बुराई ढूंढना शुरू करो। अच्छे बनने की कोशिश में ये इतने बुरे लत में डूब जाते हैं। की इनको समझ ही नहीं आता की कौन कितने किसके लिए क्या कर रहे हैं। देशभक्ति का चोला ऐसे पहने हैं जैसे कोई देश में कोई और चोला बना ही न हो। बाहर से ऐसे चोला धारण कर लेते हैं। की इनको पहचानना भी मुस्कील हो जाता है। रंग का तो पता नहीं पर रूप ऐसे खिले हुए नजर आते हैं जैसे स्वर्ग का पूरा आशीष इन्हीं के उपर विद्यमान हो। साहब किसी भी पोस्ट पाने के बाद ही पहचान बनती है।
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